पीयूष पांडे : 2000s भारतीय विज्ञापन का ‘फेविकॉल का जोड़’ अब टूट गया

पीयूष पांडे

Piyush Pandey Death:भारतीय विज्ञापन जगत के महानायक पीयूष पांडे का 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
उनकी रचनात्मकता, लोकभाषा में संवाद की शक्ति और ‘दिल छू जाने वाले’ विज्ञापनों ने उन्हें भारत ही नहीं, विश्व-स्तर पर पहचान दिलाई।
वह व्यक्ति, जिसने *“फेविकॉल का जोड़”, “कुछ खास है”, “हर खुशी में रंग लाए”* जैसे कालजयी विज्ञापन दिए — आज नहीं रहे, लेकिन उनका प्रभाव हर भारतीय के मन में सदा रहेगा।

पीयूष पांडे

करियर की शुरुआत

राजस्थान के जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे ने अपने करियर की शुरुआत एक असामान्य ढंग से की थी।
उन्होंने कभी क्रिकेट खेला, चाय-चखने का काम (टी टेस्टर) किया और यहां तक कि निर्माण-कार्य में भी हाथ आजमाया।
लेकिन उनका सच्चा बुलावा *विज्ञापन की दुनिया* में था।

1982 में उन्होंने *Ogilvy & Mather India* (अब *Ogilvy India) में बतौर **ट्रेनी अकाउंट एग्जीक्यूटिव* करियर की शुरुआत की।
वहां उन्होंने धीरे-धीरे विज्ञापन-लेखन और क्रिएटिव टीम का हिस्सा बनकर अपनी रचनात्मकता का परिचय दिया।
बाद में वे क्रिएटिव डायरेक्टर बने और भारतीय विज्ञापन के इतिहास को नई दिशा दी।

ऐसे विज्ञापन जो यादों में बस गए

पीयूष पांडे की सबसे बड़ी ताकत थी — *साधारण को असाधारण बना देना*।
उनके बनाए विज्ञापन न केवल ब्रांड को पहचान दिलाते थे बल्कि लोगों के दिल में जगह बना लेते थे।

Asian Paints – “हर खुशी में रंग लाए”*

यह अभियान घर, परिवार और भावनाओं को जोड़ने वाला था। पेंट बेचने से ज्यादा यह संदेश देता था कि “घर की दीवारें हमारी कहानियाँ कहती हैं।”

Cadbury Dairy Milk – “कुछ खास है जिंदगी में”*

इस विज्ञापन ने चॉकलेट को सिर्फ बच्चों का नहीं बल्कि हर उम्र के लोगों के जश्न और खुशी का प्रतीक बना दिया।

Fevicol – “Fevicol का जोड़” और “Egg” फिल्म*

इन विज्ञापनों ने Fevicol को सिर्फ एक ब्रांड नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का हिस्सा बना दिया।
“Fevicol का जोड़” आज भी भारतीय भाषाओं में एक मुहावरा बन चुका है।

पुरस्कार और अंतरराष्ट्रीय पहचान

पीयूष पांडे भारतीय विज्ञापन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले गए।

* 2004 में वे *Cannes Lions International Festival of Creativity* में *पहले एशियाई ज्यूरी अध्यक्ष* बने।
* 2012 में उन्हें *CLIO Lifetime Achievement Award* से सम्मानित किया गया।
* 2016 में पद्मश्री पुरस्कार, जो किसी भारतीय विज्ञापन-विशेषज्ञ को पहली बार मिला।

उनके निधन पर देशभर में शोक

पीयूष पांडे के निधन की खबर से पूरा देश और क्रिएटिव जगत शोक में डूब गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X (ट्विटर) पर लिखा,

 “श्री पीयूष पांडे जी अपनी रचनात्मकता के लिए प्रशंसित थे। उन्होंने विज्ञापन और संचार की दुनिया में अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना।”

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी श्रद्धांजलि देते हुए कहा:

 “पीयूष पांडे ने आम बोलचाल की भाषा, ज़मीनी हास्य और सच्ची गर्मजोशी से विज्ञापन की दुनिया को मानवीय बनाया। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।”

फिल्ममेकर हंसल मेहता ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में कहा:

 “Fevicol का जोड़ टूट गया। आज ऐड वर्ल्ड ने अपना ग्लू खो दिया। Go well Piyush Pandey.”

उनका प्रभाव और विरासत

पीयूष पांडे ने भारतीय विज्ञापन को एक नई परिभाषा दी —
*जहां ब्रांड सिर्फ उत्पाद नहीं, बल्कि कहानी बन गए।*

1. *लोकभाषा में संवाद* – उन्होंने साबित किया कि हिंदी और स्थानीय भाषाएं विज्ञापन के लिए सबसे प्रभावी माध्यम हैं।
2. *मानवीय भावनाओं का चित्रण* – हर विज्ञापन के केंद्र में इंसान और उसकी भावनाएं थीं, न कि सिर्फ ब्रांड।
3. *युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा* – Ogilvy में उन्होंने कई युवा रचनाकारों को प्रशिक्षित किया और उन्हें सिखाया कि “विचार ज़रूरी है, भाषा नहीं।”
4. *भारतीयता का गौरव* – उन्होंने भारतीय विज्ञापन को विश्व-स्तर पर पहुंचाया और उसे अपनी पहचान दिलाई।

पियूष पांडे

पीयूष पांडे का निधन विज्ञापन जगत के लिए एक युग का अंत है,
लेकिन उनका काम, उनके विचार और उनके बनाए संवाद हमेशा जीवित रहेंगे।

Fevicol, Cadbury, Asian Paints, Vodafone – ये सिर्फ ब्रांड नहीं हैं, बल्कि उनकी कल्पना का प्रमाण हैं।
उन्होंने हमें सिखाया कि असली क्रिएटिविटी *लोगों की भाषा और भावनाओं को समझने में है।*

आज जब हम उनके बनाए विज्ञापनों को याद करते हैं, तो लगता है जैसे वे सिर्फ प्रोडक्ट नहीं बेच रहे थे,
बल्कि *भारत की आत्मा* को बयान कर रहे थे।

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