राजा राम मोहन राय भारत के उन महान सुधारकों में से थे जिन्होंने देश में सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक सुधारों की नींव रखी। उन्हें भारतीय पुनर्जागरण (Indian Renaissance) का पिता भी कहा जाता है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के राधानगर गाँव में हुआ। उन्होंने संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और अरबी जैसी कई भाषाओं का गहरा ज्ञान प्राप्त किया। बचपन से ही वे रूढ़िवादी मान्यताओं पर सवाल उठाते थे।
सती प्रथा के खिलाफ आवाज
उनके जीवन का सबसे बड़ा योगदान था सती प्रथा के खिलाफ संघर्ष। उस समय पत्नी अपने मृत पति की चिता पर ज़िंदा जला दी जाती थी।
राम मोहन राय ने इसके खिलाफ आंदोलन चलाया और अंततः 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर कानूनी प्रतिबंध लगा दिया।
ब्राह्मो समाज की स्थापना
1828 में उन्होंने ब्राह्मो समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था—
- एकेश्वरवाद की भावना को बढ़ावा
- सामाजिक कुरीतियों का विरोध
- जाति-भेद और अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज
यह संगठन आगे चलकर भारत के सामाजिक सुधार आंदोलनों की रीढ़ बना।
शिक्षा सुधार
उन्होंने भारतीय समाज में आधुनिक शिक्षा का रास्ता खोला।
- अंग्रेजी और विज्ञान शिक्षा को आगे बढ़ाया
- हिंदू कॉलेज जैसे संस्थानों के निर्माण में योगदान
- महिलाओं की शिक्षा के लिए विशेष प्रयास
पत्रकारिता और लेखन
राजा राम मोहन राय भारत के शुरुआती पत्रकारों में भी शामिल थे।
उन्होंने संवाद कौमुदी, मीिरात-उल-अख़बार जैसे अख़बार निकाले और सामाजिक मुद्दों को जनता तक पहुँचाया।
मृत्यु
1833 में इंग्लैंड के ब्रिस्टल में उनका निधन हुआ। लेकिन उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 200 साल पहले थे।
