Bhagat Singh Biography
Bhagat Singhशहीद भगत सिंह का जन्म बंगा,पंजाब(पाकिस्तान) में सन 27 सितंबर,1907 को हुआ था।भगत सिंह देश के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी थे। भारत देश की आजादी के लिए इन्हें अंग्रेज शासन द्वारा फांसी की सजा दे दी गई। जिसमें इनके साथ कई क्रांति जैसे शहीद सुखदेव, शहीद राजगुरु को फांसी पर लटका दिया गया।
शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद व अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। इन्होंने सबसे पहले लाहौर में बर्नी सांडर्स की हत्या की और तत्पश्चात दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम धमाका करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुला विरोध किया।
Bhagat Singh ने अपने जीवन में कई प्रमुख संगठन बनाएं-नौजवान भारत सभा,हिंदुस्तान सोशलिस्ट,रिपब्लिकन एसोसिएशन ,भगत सिंह वन नेशन वन इलेक्शन के पक्षधर थे।

देश की आजादी में योगदान
भगत सिंह करीब 12 वर्ष की आयु में जलियांवाला बाग हत्याकांड की बात सुनकर वह क्रांतिकारी बनने की राह पर चल पड़े। गांधी जी का असहयोग आंदोलन आरंभ होने के बाद वे गांधी जी के अहिंसात्मक तरीकों और क्रांतिकारियों के हिंसक आंदोलन में से अपने लिए अलग रास्ता चुनने लगे।
शहीद भगत सिंह व उनके साथियों ने असेंबली में बम फेंक कर अंग्रेज शासन का विरोध किया जिसके फलस्वरुप अंग्रेज सरकार ने इन्हें 23 मार्च 1931 को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर लटका दिया।
लाल लाल लाजपत राय की हत्या का बदला
1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए प्रदर्शन कर रहे लाला लाजपत राय और अन्य प्रदर्शनकारियों पर अंग्रेजी शासन ने लाठीचार्ज किया। जिससे लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई और उनकी मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने योजना बनाया।
भगत सिंह और राजगुरु लाहौर कोतवाली के सामने एसपी सांडर्स को आते ही देखकर गोली सीधे उनके सिर में मारी और यह सोचकर कि कहीं बच ना जाए उन्होंने चार-पांच गोली उनके ऊपर और चला दी।इन्होंने सांडर्स को मार कर इन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया।
भगत सिंह के जेल के दिन
जेल में भगत सिंह करीब 2 साल रहे इस दौरान उन्होंने एक पुस्तक भी लिखा जिसका नाम था”मैं नास्तिक क्यों हूं?”जेल में भगत सिंह और उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूल हड़ताल की और उनके एक साथी यतींद्रनाथ दास ने भूख हड़ताल में ही अपना प्राण त्याग दिया।
असेंबली में बम फेंकने की योजना
युवाओं के हृदय में देश प्रेम जगाने के लिए उन्होंने 1929 में दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई। Bhagat Singh चाहते थे कि इसमें कोई खून खराबा ना हो इसलिए उन्होंने केंद्रीय असेंबली में ऐसे स्थान पर बम फेंका जहां कोई मौजूद न था।
Bhagat Singh वामपंथी विचारधारा के समर्पित थे और वह कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों के मार्ग पर चलते थे, कार्ल मार्क्स कांग्रेस के सत्ता में रहने के बावजूद भगत सिंह को शहीद का दर्जा नहीं दिया क्योंकि वह केवल भगत सिंह के नाम का इस्तेमाल युवाओं को अपने पार्टी में जोड़ने के लिए करते थे।
बम धमाका के बाद उन्होंने“इंकलाब-जिंदाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद” का नारा लगाया और अपने साथ लाए हुए पर्चे हवा उछाल दिए और उनको अंग्रेज शासन द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।
क्रांतिकारियों को फांसी
26 अगस्त 1930 को अदालत में Bhagat Singh और उनके साथियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 129,302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी घोषित किया।
7 अक्टूबर 1930 को अदालत ने 68 पेज का निर्णय दिया जिसमें भगत सिंह,सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई।सजा सुनाए जाने के ही साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई।
फांसी पर जाते समय वह तीनों मस्ती से गा रहे थे
मेरा रंग डे बसंती चोला,मेरा रंग दे। मेरा रंग डे बसंती चोला,माय रंग दे बसंती चोला
फांसी के बाद कहीं कोई आंदोलन भड़क ना जाए इसके डर से अंग्रेजों ने उनके मृत शरीर के टुकड़े किए फिर बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गए जहां घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया गया और उनके अधजले टुकड़ों को सतलज नदी में फेंका। पास के गांव वालों ने मिलकर मृत शरीर के टुकड़ों को एकत्रित किया और विधिवत दाह संस्कार किया।इसके बाद Bhagat Singh हमेशा के लिए अमर हो गए।इसके बाद लोग अंग्रेजों के साथ-साथ गांधी जी को भी उनकी मौत का जिम्मेदार समझने लगे।लाहौर अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया।
ख्याति और सम्मान
Bhagat Singh मृत्यु की खबर को लाहौर के दैनिक ट्रिब्यून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा।इसके बाद भी कई मार्क्सवादी पत्रों में उन पर लेख छपे।
उनके जीवन ने कई युवाओं को प्रेरित किया और आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आजादी के नायक के रूप में देखती है।
दक्षिण भारत में पेरियार ने उनके लेख में”मैं नास्तिक क्यों हूं?” के ऊपर अपने साप्ताहिक पत्र की अंक में तमिल भाषा में संपादित किया।
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