Maithili Thakur ने मचाई चुनावी सनसनी! मिथिला की बेटी अब बिहार चुनाव 2025 में BJP की उम्मीदवार

Maithili Thakur

लोकप्रिय लोकगायिका Maithili Thakur अब केवल सुरों की दुनिया में ही नहीं, बल्कि राजनीति के मंच पर भी छा गई हैं। मिथिला की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी मैथिली अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतर चुकी हैं। मिथिला क्षेत्र के दरभंगा जिले की अलिनगर विधानसभा सीट से भाजपा ने उन्हें टिकट देकर न सिर्फ एक बड़ा दांव खेला है, बल्कि लोकसंस्कृति को राजनीति से जोड़ने की कोशिश भी की है।


Maithili Thakur कौन हैं?

25 वर्षीय मैथिली ठाकुर का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। दरभंगा की रहने वाली मैथिली ने बचपन से ही संगीत की शिक्षा ली और अपने पिता रमाकांत ठाकुर से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखा। उन्होंने “राइजिंग स्टार” जैसे टीवी शो से देशभर में नाम कमाया और बाद में सोशल मीडिया के जरिए करोड़ों दर्शकों तक पहुँचीं।
उनके मैथिली, भोजपुरी, अवधी, हिंदी और संस्कृत गीतों ने उन्हें एक लोकप्रिय सांस्कृतिक आइकन बना दिया। आज मैथिली न सिर्फ मिथिला की बेटी हैं, बल्कि भारत की लोक-परंपरा की आवाज़ बन चुकी हैं।


राजनीति में प्रवेश: समाजसेवा से प्रेरित कदम

मैथिली ठाकुर ने अक्टूबर 2025 में भाजपा की सदस्यता ली। उन्होंने अपने पहले संबोधन में कहा –

“मैं राजनीति इसलिए नहीं आई हूँ कि मुझे पद चाहिए, बल्कि मैं समाज की सेवा एक बड़े मंच से करना चाहती हूँ।”
भाजपा ने तुरंत उन्हें अलिनगर विधानसभा क्षेत्र से टिकट देकर मैदान में उतार दिया। पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा मिथिला क्षेत्र में सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव को वोट में बदलने की रणनीति अपना रही है।


BJP का दांव: मिथिला गौरव और युवा चेहरा

दरभंगा, मधुबनी और समस्तीपुर का इलाका मिथिला क्षेत्र में आता है, जहाँ मैथिली भाषा और संस्कृति गहराई से जुड़ी हुई है। भाजपा चाहती है कि मैथिली ठाकुर के ज़रिए वह इस क्षेत्र में “मिथिला गौरव” की भावना को जगाए।
उनकी सोशल मीडिया फैन-फॉलोइंग 50 लाख से ज़्यादा है, जो युवा वोटरों तक पहुंचने में बड़ी मदद साबित हो सकती है। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक —

“भाजपा ने मैथिली को टिकट देकर साफ संदेश दिया है कि वह संस्कृति और राष्ट्रवाद दोनों को साथ लेकर चलना चाहती है।”


अलिनगर सीट का समीकरण

अलिनगर विधानसभा सीट पर पिछली बार का मुकाबला बहुत कांटे का रहा था। 2020 के चुनाव में इस सीट पर जीत का अंतर मात्र 3,000 वोटों का था। यहाँ यादव, ब्राह्मण, मुस्लिम, EBC और दलित वोटरों का प्रभाव है।
भाजपा का मानना है कि मैथिली की सांस्कृतिक लोकप्रियता और “बेटी मिथिला की” इमेज इस बार मतदाताओं को आकर्षित करेगी।


जनता का रुख: प्रशंसा और सवाल दोनों

मैथिली ठाकुर की उम्मीदवारी को लेकर जनता में उत्साह तो है, लेकिन सवाल भी हैं।
कुछ स्थानीय लोगों का कहना है —

“मैथिली ठाकुर हमारी शान हैं, लेकिन राजनीति में अनुभव न होने से उन्हें चुनौतियाँ मिल सकती हैं।”
वहीं, युवा मतदाताओं का रुख बिल्कुल अलग है —
“हम चाहते हैं कि युवा और पढ़े-लिखे लोग राजनीति में आएं। मैथिली ठाकुर इसका सही उदाहरण हैं।”


Bihar Election 2025 में चुनौतियाँ भी कम नहीं

  1. राजनीतिक अनुभव की कमी: मैथिली पहली बार राजनीति में उतरी हैं, इसलिए संगठन और जमीनी रणनीति में उन्हें मेहनत करनी होगी।
  2. जातीय समीकरण: अलिनगर में जातिगत राजनीति हमेशा से प्रभावशाली रही है। सिर्फ लोकप्रियता से वोट बैंक हासिल करना आसान नहीं होगा।
  3. स्थानीय बनाम बाहरी छवि: कुछ विरोधी दल मैथिली को “सेलिब्रिटी उम्मीदवार” बताकर स्थानीय मुद्दों से दूरी का आरोप लगा रहे हैं।

मैथिली ठाकुर का दृष्टिकोण

मैथिली का कहना है कि वे राजनीति को “लोकसेवा का विस्तार” मानती हैं।

“मैं हमेशा से मिथिला और बिहार की संस्कृति को दुनिया तक पहुँचाने में लगी रही हूँ। अब मैं उसी संस्कृति को विकास से जोड़ना चाहती हूँ।”
उनके भाई रचित और अयाची ठाकुर भी लगातार चुनाव प्रचार में उनका साथ दे रहे हैं। उनके संगीत के जरिए भी प्रचार अभियान को रचनात्मक बनाया गया है।


राजनीतिक विश्लेषण: क्या भाजपा का यह प्रयोग सफल होगा?

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भाजपा का यह कदम “संस्कृति-आधारित राजनीति” का नया प्रयोग है।

  • मिथिला की भावनाओं को सम्मान देकर पार्टी ने क्षेत्रीय गर्व को संबोधित किया है।
  • वहीं, युवा और महिला वोटरों में मैथिली ठाकुर की छवि ईमानदार, सॉफ्ट और प्रेरक है।
    यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो भविष्य में भाजपा और भी ऐसे सांस्कृतिक चेहरों को राजनीति में उतार सकती है।

निष्कर्ष: मैथिली ठाकुर का कला से राजनीति तक का सफर

उनकी राजनीति में कदम सिर्फ एक चुनावी फैसला नहीं, बल्कि कला और समाजसेवा के संगम की नई मिसाल है।
जहाँ एक ओर वे मिथिला की आवाज़ हैं, वहीं दूसरी ओर अब वे बिहार की नई राजनीति की उम्मीद बन चुकी हैं।
उनकी जीत-हार से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि अब राजनीति में संस्कृति, संगीत और सामाजिक संवेदना की नई लहर देखने को मिल रही है।

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