वन नेशन वन इलेक्शन 2025: क्या खत्म होंगे बार-बार के चुनाव और खर्चे?

वन नेशन, वन इलेक्शन
वन नेशन, वन इलेक्शन

वन नेशन वन इलेक्शन: एक देश, एक चुनाव

वन नेशन वन इलेक्शन एक राष्ट्र-एक चुनाव भारत सरकार द्वारा निर्मित विचाराधीन एक प्रस्ताव है।जिसका उद्देश्य देश में सभी चुनावों को एक ही दिन या एक निश्चित समय में एक साथ करना है ताकि चुनाव लागत में कमी लाया जा सके।भारत में लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है चुनाव, क्योंकि यही वह प्रक्रिया है जो जनता को अपनी सरकार चुनने का अधिकार देती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हों तो क्या होगा? 

देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद वर्ष 1951-52 से वर्ष 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभा के निर्वाचन साथ-साथ कराए गए थे और उसके बाद सभी चुनाव अलग-अलग होने लगे।अब निर्वाचन लगभग प्रत्येक वर्ष और 1 वर्ष के भीतर भिन्न समय पर भी आयोजित किए जाते हैं। इससे सरकार द्वारा अधिक व्यय होता है जिससे देश की आर्थिक निधि में अतिरिक्त बोझ पड़ता है।ऐसे में निर्वाचन में लगाए गए सुरक्षा बलों और अन्य निर्वाचन अधिकारियों की निर्वाचन आयोग द्वारा अपने मूल कर्तव्यों से अलग अन्य तैनाती व आचार संहिता लागू करने के कारण मूल विकास कार्य में लम्बे समय के लिया समस्या उत्पन्न होती हैं।

भारत के विधि आयोग : यह विचार कब सामने आया?

इस विचार की जड़ें नई नहीं हैं।
1952 से 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं, जिससे यह चक्र टूट गया और तब से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विचार को फिर से चर्चा में लाया और इसे लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाए। हाल ही में भारत सरकार ने रामनाथ कोविंद समिति का गठन किया है जो “वन नेशन वन इलेक्शन” पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रही है।

कार्मिक,लोक शिकायत,विधि और न्याय विभाग से संबंधित संसदीय स्थाई समिति ने’लोकसभा और राज्य विधानसभा’के लिए साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने पर दिसंबर 2015 में प्रदर्शित अपने 79वी रिपोर्ट में भी इस मामले की जांच की और दो चरणों में साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की विकल्प विधि रखने की सिफारिश की।

कानूनी और संवैधानिक पहलू

सभी बातों को ध्यान में रखते हुए और राष्ट्रीय हित में निर्वाचन करने के लिए भारत सरकार ने एक साथ निर्वाचन आयोजित करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति (HLC)का गठन करती है।“वन नेशन वन इलेक्शन” लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन की जरूरत होगी।
इसके अलावा चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय, और राज्य सरकारों की सहमति भी आवश्यक होगी।
संविधान में यह व्यवस्था करनी होगी कि अगर किसी राज्य की विधानसभा भंग हो जाती है, तो वह राष्ट्रपति शासन के तहत अगली चुनावी अवधि तक चले।

भारत के विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधार के लिए अपनी 170वीं रिपोर्ट में प्रस्तुत किया जिसमें यह प्रदर्शित है।

हमें उस पूर्व स्थिति का फिर से अवलोकन करना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभा के लिए निर्वाचन साथ-साथ किए जाते हैं।यह सत्य है कि हम सभी स्थितियों या संभाव्यताओं के विषय में कल्पना नहीं कर सकते या उनके लिए उपबंध नहीं कर सकते, चाहे अनुच्छेद 356 के प्रयोग के कारण जो( जो उच्चतम न्यायालय के S.R.बोम्मई बनाम भारत संघ के विनिश्चय के पश्चात सारवान रूप से कम हुआ है) या किसी अन्य कारण से उत्पन्न हो सकेंगे,किसी विधानसभा के के लिए पृथक निर्वाचन आयोजित करना एक अपवाद होना चाहिए न कि नियम यह होना चाहिए कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए 5 वर्ष में एक बार में एक निर्वाचनहो।”

वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे

1.समय और धन की बचत:
बार-बार चुनाव कराने में हजारों करोड़ रुपये खर्च होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन कराने से यह खर्च काफी कम हो सकता है।

2. प्रशासनिक बोझ में कमी:
हर चुनाव में हजारों अधिकारी, सुरक्षा बल और शिक्षक चुनाव ड्यूटी में लगते हैं। इससे प्रशासनिक कामकाज बाधित होता है। वन नेशन वन इलेक्शन से यह बोझ घटेगा।

3.जनता की सुविधा:
बार-बार वोट डालने की परेशानी खत्म होगी। मतदाता एक ही बार अपने सभी प्रतिनिधि चुन सकेंगे।

4. विकास कार्यों में निरंतरता:
बार-बार चुनाव आने से सरकारें कोड ऑफ कंडक्ट में फंस जाती हैं और विकास कार्य रुक जाते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन से बचाव होगा।

5. राजनीतिक स्थिरता:
बार-बार के चुनाव से राजनीतिक दल लगातार चुनावी मोड में रहते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन चुनाव से नीति निर्धारण और प्रशासन पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकेगा।

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