बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्म है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने हाल ही में ऐसे संकेत दिए हैं, जिससे राज्य की सियासत में बड़ा फेरबदल संभव है। जनता दल (यू) और बीजेपी के रिश्ते, विपक्ष की एकजुटता, और 2025 के चुनाव—सब पर उनकी रणनीति चर्चा में है। क्या नीतीश एक बार फिर “किंगमेकर” की भूमिका में हैं?
नीतीश कुमार: राजनीति के मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट
नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति का “चाणक्य” कहा जाता है। उन्होंने अपने तीन दशकों के करियर में कई बार समीकरण बदलकर सत्ता को नए रूप में ढाला। 2005 से लेकर अब तक वे बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे हैं।
उनकी खासियत यह है कि वे सत्ता और सिद्धांतों के बीच संतुलन साधते हैं। यही कारण है कि वे कभी बीजेपी के साथ तो कभी महागठबंधन के साथ नज़र आते हैं।
मुख्य तथ्य (Key Facts):
- नीतीश कुमार ने 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से राजनीति की शुरुआत की।
- 2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
- अब तक 8 बार मुख्यमंत्री की शपथ ले चुके हैं।
- “सुशासन बाबू” के नाम से लोकप्रिय।
- शिक्षा, सड़क और बिजली सुधार उनके शासन की पहचान माने जाते हैं।
बिहार की राजनीति में बदलता समीकरण
हाल के महीनों में बिहार में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज़ हुई हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) ने कई बैठकों में गठबंधन की रणनीति पर मंथन किया है।
सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री राज्य के विकास कार्यों और 2025 विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं, लेकिन सियासी गलियारों में उनके संभावित “बड़े कदम” की चर्चा जोरों पर है।
कहा जा रहा है कि वे एनडीए (NDA) के साथ फिर से रिश्ते मज़बूत करने या विपक्षी गठबंधन INDIA Bloc से दूरी बढ़ाने की सोच सकते हैं।
हालांकि, उन्होंने हाल ही में एक बयान में कहा —
“हम बिहार के विकास के लिए हर दल से बात करने को तैयार हैं, लेकिन जनता का हित सर्वोपरि है।”
यह बयान फिर से उनके “मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट” वाले किरदार को चर्चा में ले आया।

क्या Nitish Kumar फिर बदलेंगे पाला?
नीतीश कुमार का राजनीतिक इतिहास बताता है कि वो कभी एक ही रास्ते पर लंबे समय तक नहीं चलते।
2013 में उन्होंने बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन बनाया, फिर 2017 में उसी बीजेपी के साथ लौट आए।
2022 में उन्होंने एक बार फिर महागठबंधन में वापसी की और बीजेपी से नाता तोड़ लिया।
अब 2025 के चुनाव से पहले राजनीतिक हलचलें फिर से तेज़ हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार किंगमेकर की भूमिका में खुद को रखना चाहते हैं — यानी न बीजेपी से पूरी दूरी, न विपक्ष से पूरी नज़दीकी।
राजनीतिक विश्लेषक अरुण मिश्रा कहते हैं:
“नीतीश कुमार की राजनीति ‘मौक़े की राजनीति’ नहीं, बल्कि ‘स्थिति की राजनीति’ है। वे हर बार बदलती परिस्थिति के हिसाब से अपनी चाल चलते हैं।”
बिहार के विकास पर फोकस या सियासत?
हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर कई नई योजनाओं की घोषणा की है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार महिलाओं की शिक्षा, युवाओं के कौशल विकास और बिजली-सड़क जैसी आधारभूत सुविधाओं पर काम कर रही है।
लेकिन विपक्ष का कहना है कि ये सारी घोषणाएँ “चुनावी तैयारी” का हिस्सा हैं।
राजद (RJD) के प्रवक्ता ने कहा —
“नीतीश कुमार विकास नहीं, सत्ता में बने रहने की राजनीति कर रहे हैं।”
वहीं, जद (यू) नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री केवल बिहार के भविष्य पर ध्यान दे रहे हैं।
2025 विधानसभा चुनाव: नीतीश की अगली रणनीति क्या होगी?
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।
अगर वे महागठबंधन में बने रहते हैं, तो उन्हें तेजस्वी यादव के बढ़ते प्रभाव का सामना करना होगा।
अगर वे फिर से बीजेपी के साथ जाते हैं, तो राज्य में नया राजनीतिक समीकरण बन सकता है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार दोनों पक्षों में अपनी “मोलभाव की ताकत” बनाए रखना चाहते हैं।
उनकी यही रणनीति उन्हें आज भी भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में बनाए रखती है।
जनता की नजर में नीतीश
बिहार की जनता अब नीतीश कुमार को “अनुभव और स्थिरता” के प्रतीक के रूप में देखती है।
हालाँकि, युवाओं में रोजगार और शिक्षा को लेकर असंतोष भी है।
सोशल मीडिया पर लोग कहते हैं कि “नीतीश कुमार ने बिहार को बदला, लेकिन अब नई दिशा की ज़रूरत है।”
निष्कर्ष (Conclusion):
नीतीश कुमार आज भी भारतीय राजनीति के सबसे अनुभवी और समझदार नेताओं में गिने जाते हैं।
उनकी हर चाल पर देश की नज़र रहती है।
आने वाले महीनों में बिहार की सियासत में जो भी बदलाव होगा, उसमें नीतीश की भूमिका “निर्णायक” रहेगी — चाहे वे सत्ता में रहें या समीकरण बदलें।
बिहार की राजनीति का अगला अध्याय फिर से नीतीश कुमार के नाम लिखा जा सकता है।
