बिना आलू वाला समोसा, केले से बनता है मसाला:खाने के लिए करना पड़ता है 6 दिन इंतजार, ग्राहकों की लगती है भीड़

क्या आप जानते हैं समोसा ईरान से आया था। फारसी में इसे ‘संबुश्क’ कहते थे, लेकिन भारत आते-आते इसे समोसा कहा जाने लगा। आकार भी बदलकर तिकोना हो गया और स्टफिंग में मेवे की जगह आलू भरा जाने लगा। धीरे-धीरे समोसा लवर्स ने इतनी वैरायटी तैयार कर डाली कि आज पनीर समोसा, पिज्जा समोसा, चॉकलेट समोसा, मावा समोसा, चाऊमीन समोसा, तंदूरी समोसा... न जाने कितने तरह के समोसा बाजार में बिकने लगे हैं। आज राजस्थानी जायका में हम आपको समोसे की ऐसी ही एक खास वैरायटी से रूबरू करवाते हैं, जिसमें आलू नहीं डलता। कच्चे केले से इसका मसाला तैयार होता है। खास बात यह है कि ये समोसा सप्ताह में केवल एक ही दिन बनता है। खाने वालों को 6 दिन तक इंतजार करना पड़ता है। आप सोचेंगे भला समोसे में ऐसी क्या खास बात है? इसी की तलाश में हम जयपुर के टोंक रोड स्थित कीर्ति नगर पहुंचे। यहां की आनंदम कैटर्स शॉप पर ज्यादातर लोगों की भीड़ यही कहती नजर आई। भाई साहब- 5 पैक कर देना। अंकल 8 पैक कर दीजिए, विद चटनी। खुशकिस्मती से उस दिन संडे था। केवल इसी दिन यहां कच्चे केले के समोसे मिलते हैं। कच्चे केले की स्टफिंग आनंदम कैटर्स रेवड़ी वालों के ऑनर मनीष जैन बताते हैं- यूं तो हमारा पुश्तैनी काम नमकीन और मिठाइयां बनाने का रहा है। 18वीं शताब्दी से जयपुर वॉल सिटी (चारदीवारी) में दादा-परदादा लोगों को अपने हाथ का स्वाद चखाते आएं हैं। सबसे पहले रेवड़ी बनाने का काम शुरू किया था। इसलिए आज भी उनकी पहचान जैन रेवड़ी वालों के नाम से है। मैं सातवीं पीढ़ी से हूं, जो पुश्तैनी काम को संभाल रहा हूं। मैंने दादा और परदादा से ही नमकीन और मिठाइयां बनानी सीखी थी। पिता और दादा को हर नमकीन-मिठाई में एक्सपेरिमेंट करते देखा करता था। मनीष जैन कहते हैं- पिताजी कहा करते थे अपना धंधा चलाना है और कुछ हटकर करना है। इसलिए चोर नजर रखो। यानी जो चीज जहां से मिल जाए, उसे पूरी तरह से आंखों में उतार लो। यहीं से मन में ख्वाहिश थी कि कुछ नया जायका जयपुर को दें, जिससे मेरी खुद की पहचान बने। आज समोसा में लोग कई तरह की स्टफिंग करते हैं। मैंने सोचा क्यों न आलू की जगह हेल्दी कच्चे केले की स्टफिंग की जाए। क्योंकि आलू से मोटापे की वजह से कई लोग समोसा नहीं खाते। केला ऐसी चीज है, जिसके बने चिप्स लोग खाते ही हैं। तब कच्चे केले की स्टफिंग के साथ समोसा तैयार किया। परिवार और दोस्तों से रिव्यू लेकर मसाले में कई तरह के बदलाव किए। अलग से मीठी और हरी चटनी भी तैयार की। इसी बीच एक शादी में बड़ा ऑर्डर मिला। उनकी डिमांड आलू समोसे की थी। मैंने सैंपल के तौर पर लेडी संगीत में कच्चे केले के समोसे भेजे। उन्हें वो समोसे इतने पसंद आए कि वेडिंग डे के दिन स्पेशियली केले के समोसे बनाने के लिए ही कहा गया। तभी 2018 में मैंने जयपुर सिटी से कीर्ति नगर में शॉप शिफ्ट कर ली। तब से सिलसिला शुरू हुआ जो आज तक जारी है। कच्चे केले से बने समोसे ने हमें एक नई पहचान दी है। जयपुर के कोने-कोने से लोग हमारे पास कच्चे केले के समोसे को ढूंढते हुए आते हैं। सिर्फ संडे को मिलते हैं केले से बने समोसे जी हां, अगर आपको केले के समोसे खाने हों तो वीकेंड तक का इंतजार करना पड़ सकता है। ये समोसे सिर्फ संडे को ही तैयार होते हैं। ऑनर मनीष जैन बताते हैं- कच्चे केले का समोसा बनाने में मेहनत थोड़ी ज्यादा लगती है। इसलिए इसे संडे स्पेशल मेन्यू में रखा गया है। बाकी के दिन हम साधारण आलू के समोसे बनाते हैं। हर संडे बिक जाते हैं 2500 समोसे मनीष जैन कहते हैं यूं तो हमारी दुकान में हर दिन बिक्री होती है। लेकिन संडे हमारे लिए बिक्री का खास दिन रहता है। इस दिन 2 हजार से लेकर 2500 के करीब कच्चे केले से बनने वाले समोसे बिक जाते हैं। वैसे ये चटपटा समोसा 18 रुपए का एक पीस होता है। अगर कोई देसी घी में बना समोसा खाना चाहता है तो पर पीस 15 रुपए रुपए एक्स्ट्रा चुकाने पड़ते हैं। आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब आलू के बिना समोसे की लोग कल्पना भी नहीं करते। इसलिए स्वाद बढ़ाने के लिए वे सीक्रेट मसालों का इस्तेमाल करते हैं। दो तरह के मसालों बनाते हैं। पहला सफेद मसाले जिसमें अदरक और कुटी हुई हरी मिर्च इस्तेमाल होती है। दूसरा चटपटे मसाले- जिसमें साबुत धनिया और सौंफ के अलावा उनके सीक्रेट मसाले होते हैं। मटर और कच्चे केले के कॉम्बिनेशन से स्टफिंग तैयार करते हैं। ताजे और हरे केले से ही स्टफिंग तैयार की जाती है। अगर केला हल्का सा भी पक जाए तो उसे इस्तेमाल में नहीं लिया जाता। तैयार होने के बाद समोसे को दो तरह की चटनी हरी (धनिया-पुदीना) और मीठी (सौंठ से बनी चटनी) के साथ सर्व करते हैं। मनीष कहते हैं कि आज हमारी शॉप पर दस साल के बच्चे से लेकर 75 साल के बुजुर्ग भी कच्चे केले से बने समोसे का स्वाद लेने आते हैं। जिन्हें आलू पसंद नहीं या फिर जो लोग हेल्थ को देखते हुए आलू नहीं खाना चाहते उनके लिए यहां का समोसा एक बेहतरीन विकल्प है। पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर ये है नाथद्वारा की प्रसिद्ध पुदीना चाय। इसका स्वाद लेने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और अंबानी जैसे बिजनेस क्लास के लोग भी आते हैं। श्रीनाथजी प्रभु की मंगला झांकी दर्शन के बाद भक्तों की भीड़ पुदीने की चाय वाली थड़ियों पर उमड़ती है। खास बात यह है कि पुदीना चाय सुबह केवल चार घंटे ही मिलती है। नाथद्वारा शहर की चौपाटी, लाल बाजार, दिल्ली बाजार, माणक चौक, गांधी रोड, नया बाजार और मंदिर परिक्रमा में चाय के स्टॉल लगते हैं। श्रीजी की मंगला और श्रृंगार झांकी के दर्शन करने आने वाले आसपास के जिले उदयपुर, भीलवाड़ा, चितौड़गढ़ के श्रद्धालु भी इसे पसंद करते हैं। बताते हैं एक भक्त की फरमाइश पर नाथद्वारा में यह जायका बना था....जो आज देशभर में प्रसिद्ध हो चुका है।

Mar 21, 2024 - 06:30
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बिना आलू वाला समोसा, केले से बनता है मसाला:खाने के लिए करना पड़ता है 6 दिन इंतजार, ग्राहकों की लगती है भीड़
क्या आप जानते हैं समोसा ईरान से आया था। फारसी में इसे ‘संबुश्क’ कहते थे, लेकिन भारत आते-आते इसे समोसा कहा जाने लगा। आकार भी बदलकर तिकोना हो गया और स्टफिंग में मेवे की जगह आलू भरा जाने लगा। धीरे-धीरे समोसा लवर्स ने इतनी वैरायटी तैयार कर डाली कि आज पनीर समोसा, पिज्जा समोसा, चॉकलेट समोसा, मावा समोसा, चाऊमीन समोसा, तंदूरी समोसा... न जाने कितने तरह के समोसा बाजार में बिकने लगे हैं। आज राजस्थानी जायका में हम आपको समोसे की ऐसी ही एक खास वैरायटी से रूबरू करवाते हैं, जिसमें आलू नहीं डलता। कच्चे केले से इसका मसाला तैयार होता है। खास बात यह है कि ये समोसा सप्ताह में केवल एक ही दिन बनता है। खाने वालों को 6 दिन तक इंतजार करना पड़ता है। आप सोचेंगे भला समोसे में ऐसी क्या खास बात है? इसी की तलाश में हम जयपुर के टोंक रोड स्थित कीर्ति नगर पहुंचे। यहां की आनंदम कैटर्स शॉप पर ज्यादातर लोगों की भीड़ यही कहती नजर आई। भाई साहब- 5 पैक कर देना। अंकल 8 पैक कर दीजिए, विद चटनी। खुशकिस्मती से उस दिन संडे था। केवल इसी दिन यहां कच्चे केले के समोसे मिलते हैं। कच्चे केले की स्टफिंग आनंदम कैटर्स रेवड़ी वालों के ऑनर मनीष जैन बताते हैं- यूं तो हमारा पुश्तैनी काम नमकीन और मिठाइयां बनाने का रहा है। 18वीं शताब्दी से जयपुर वॉल सिटी (चारदीवारी) में दादा-परदादा लोगों को अपने हाथ का स्वाद चखाते आएं हैं। सबसे पहले रेवड़ी बनाने का काम शुरू किया था। इसलिए आज भी उनकी पहचान जैन रेवड़ी वालों के नाम से है। मैं सातवीं पीढ़ी से हूं, जो पुश्तैनी काम को संभाल रहा हूं। मैंने दादा और परदादा से ही नमकीन और मिठाइयां बनानी सीखी थी। पिता और दादा को हर नमकीन-मिठाई में एक्सपेरिमेंट करते देखा करता था। मनीष जैन कहते हैं- पिताजी कहा करते थे अपना धंधा चलाना है और कुछ हटकर करना है। इसलिए चोर नजर रखो। यानी जो चीज जहां से मिल जाए, उसे पूरी तरह से आंखों में उतार लो। यहीं से मन में ख्वाहिश थी कि कुछ नया जायका जयपुर को दें, जिससे मेरी खुद की पहचान बने। आज समोसा में लोग कई तरह की स्टफिंग करते हैं। मैंने सोचा क्यों न आलू की जगह हेल्दी कच्चे केले की स्टफिंग की जाए। क्योंकि आलू से मोटापे की वजह से कई लोग समोसा नहीं खाते। केला ऐसी चीज है, जिसके बने चिप्स लोग खाते ही हैं। तब कच्चे केले की स्टफिंग के साथ समोसा तैयार किया। परिवार और दोस्तों से रिव्यू लेकर मसाले में कई तरह के बदलाव किए। अलग से मीठी और हरी चटनी भी तैयार की। इसी बीच एक शादी में बड़ा ऑर्डर मिला। उनकी डिमांड आलू समोसे की थी। मैंने सैंपल के तौर पर लेडी संगीत में कच्चे केले के समोसे भेजे। उन्हें वो समोसे इतने पसंद आए कि वेडिंग डे के दिन स्पेशियली केले के समोसे बनाने के लिए ही कहा गया। तभी 2018 में मैंने जयपुर सिटी से कीर्ति नगर में शॉप शिफ्ट कर ली। तब से सिलसिला शुरू हुआ जो आज तक जारी है। कच्चे केले से बने समोसे ने हमें एक नई पहचान दी है। जयपुर के कोने-कोने से लोग हमारे पास कच्चे केले के समोसे को ढूंढते हुए आते हैं। सिर्फ संडे को मिलते हैं केले से बने समोसे जी हां, अगर आपको केले के समोसे खाने हों तो वीकेंड तक का इंतजार करना पड़ सकता है। ये समोसे सिर्फ संडे को ही तैयार होते हैं। ऑनर मनीष जैन बताते हैं- कच्चे केले का समोसा बनाने में मेहनत थोड़ी ज्यादा लगती है। इसलिए इसे संडे स्पेशल मेन्यू में रखा गया है। बाकी के दिन हम साधारण आलू के समोसे बनाते हैं। हर संडे बिक जाते हैं 2500 समोसे मनीष जैन कहते हैं यूं तो हमारी दुकान में हर दिन बिक्री होती है। लेकिन संडे हमारे लिए बिक्री का खास दिन रहता है। इस दिन 2 हजार से लेकर 2500 के करीब कच्चे केले से बनने वाले समोसे बिक जाते हैं। वैसे ये चटपटा समोसा 18 रुपए का एक पीस होता है। अगर कोई देसी घी में बना समोसा खाना चाहता है तो पर पीस 15 रुपए रुपए एक्स्ट्रा चुकाने पड़ते हैं। आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब आलू के बिना समोसे की लोग कल्पना भी नहीं करते। इसलिए स्वाद बढ़ाने के लिए वे सीक्रेट मसालों का इस्तेमाल करते हैं। दो तरह के मसालों बनाते हैं। पहला सफेद मसाले जिसमें अदरक और कुटी हुई हरी मिर्च इस्तेमाल होती है। दूसरा चटपटे मसाले- जिसमें साबुत धनिया और सौंफ के अलावा उनके सीक्रेट मसाले होते हैं। मटर और कच्चे केले के कॉम्बिनेशन से स्टफिंग तैयार करते हैं। ताजे और हरे केले से ही स्टफिंग तैयार की जाती है। अगर केला हल्का सा भी पक जाए तो उसे इस्तेमाल में नहीं लिया जाता। तैयार होने के बाद समोसे को दो तरह की चटनी हरी (धनिया-पुदीना) और मीठी (सौंठ से बनी चटनी) के साथ सर्व करते हैं। मनीष कहते हैं कि आज हमारी शॉप पर दस साल के बच्चे से लेकर 75 साल के बुजुर्ग भी कच्चे केले से बने समोसे का स्वाद लेने आते हैं। जिन्हें आलू पसंद नहीं या फिर जो लोग हेल्थ को देखते हुए आलू नहीं खाना चाहते उनके लिए यहां का समोसा एक बेहतरीन विकल्प है। पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर ये है नाथद्वारा की प्रसिद्ध पुदीना चाय। इसका स्वाद लेने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और अंबानी जैसे बिजनेस क्लास के लोग भी आते हैं। श्रीनाथजी प्रभु की मंगला झांकी दर्शन के बाद भक्तों की भीड़ पुदीने की चाय वाली थड़ियों पर उमड़ती है। खास बात यह है कि पुदीना चाय सुबह केवल चार घंटे ही मिलती है। नाथद्वारा शहर की चौपाटी, लाल बाजार, दिल्ली बाजार, माणक चौक, गांधी रोड, नया बाजार और मंदिर परिक्रमा में चाय के स्टॉल लगते हैं। श्रीजी की मंगला और श्रृंगार झांकी के दर्शन करने आने वाले आसपास के जिले उदयपुर, भीलवाड़ा, चितौड़गढ़ के श्रद्धालु भी इसे पसंद करते हैं। बताते हैं एक भक्त की फरमाइश पर नाथद्वारा में यह जायका बना था....जो आज देशभर में प्रसिद्ध हो चुका है।

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