कुमार विश्वास को मेरठ से उतार सकती है भाजपा:गाजियाबाद-मुरादाबाद में सपा ने नहीं खोले पत्ते; वेस्ट यूपी की 5 सीटों पर BJP कैंडिडेट पर पेंच
पश्चिम उत्तर प्रदेश... चुनावी महासमर का अहम किला है। जिसको फतह करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर सभी पार्टियां जोर लगा रही हैं। अहमियत ऐसे समझें कि मोदी-योगी भी चुनाव प्रचार की शुरुआत पश्चिम यूपी से ही करते हैं। यही वजह है कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा सिर्फ उन्हीं चेहरों पर दांव लगाना चाहती है, जो जीत दिलाए। इसलिए मंगलवार की आधी रात तक भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति पश्चिम यूपी की 5 सीटों के टिकटों को लेकर मंथन करती रही। ये सीट हैं, गाजियाबाद, मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली। इनमें गाजियाबाद और मेरठ सीट पर 2009 से लेकर 2019 तक, 3 चुनाव में भाजपा का ही कब्जा रहा है। जबकि मुरादाबाद और सहारनपुर में भाजपा के लिए सांसद बनाना चुनौती रहा है। मुरादाबाद में 2009 लोकसभा चुनाव में क्रिकेटर अजहरुद्दीन कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। इसके बाद 2014 में भाजपा के कुंवर सर्वेश जीते, लेकिन 2019 में यह सीट फिर सपा के पास चली गई। बरेली में पिछले 2 लोकसभा चुनाव से लगातार भाजपा के सांसद संतोष गंगवार जीतते आ रहे हैं। इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन चुनाव जीते थे। उन्हें सपा ने 2024 के आम चुनाव में अपना कैंडिडेट बनाया है। इसलिए यहां फाइट मानी जा रही है। मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली में भाजपा के टिकट पर कौन चुनाव लड़ेगा? यह अगले 24 घंटे में साफ हो जाएगा। मगर भाजपा में मेरठ सीट पर कुमार विश्वास और अरुण गोविल के नाम चल रहे हैं। गाजियाबाद में जनरल विजय कुमार सिंह टिकट की दौड़ में सबसे आगे हैं। बरेली में पीलीभीत से विधायक संजय सिंह के नाम की चर्चा है। यहां बता दें कि भाजपा यूपी की 51 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। आज 24 सीटों पर प्रत्याशी घोषित हो सकते हैं। एक-एक करके जानते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 5 सीटों पर क्यों पेंच फंसा हुआ है... 1. गाजियाबाद : नाम कई..मगर वीके सिंह मोदी-शाह की पसंद यहां से जनरल विजय कुमार सिंह BJP से लगातार दो बार सांसद हैं। दोनों बार से ही केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं। तीसरी बार भी टिकट पाने की दौड़ में सबसे ऊपर हैं। टिकट की दौड़ में कई और नाम भी आए हैं। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह, राज्यसभा सांसद डॉक्टर अनिल अग्रवाल और अनिल जैन हैं। डॉ. अनिल अग्रवाल संघ परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। वहीं अनिल जैन भी राज्यसभा सांसद हैं और भाजपा के हरियाणा-छत्तीसगढ़ प्रभारी रह चुके हैं। अरुण सिंह, गृहमंत्री अमित शाह के सबसे करीबी माने जाते हैं और लंबे वक्त से संगठन के लिए काम कर रहे हैं। पेंच क्यों फंसा है? : जनरल वीके सिंह का पॉलिटिक्स में कोई गॉडफादर है तो वो सीधे नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं। वही दोनों इन्हें भाजपा में लाए। सीधे गाजियाबाद लोकसभा सीट से टिकट दिया और पहली बार में ही केंद्र में राज्यमंत्री बनाया। अब जब पहली लिस्ट में वीके सिंह का नाम नहीं आया तो वे सीधे गॉडफादर के पास पहुंच गए और तीसरी बार भी चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की। लेकिन संघ और पार्टी नेतृत्व की तरफ से कई और नाम भी ऊपर तक पहुंच गए हैं। इसलिए इस सीट पर पेंच फंसा हुआ है। पार्टी नेतृत्व जनरल वीके सिंह को 'कुछ और' बेहतर देना चाहता है, लेकिन वीके सिंह टिकट पर अड़े हैं। 2. मेरठ : दौड़ में अरुण गोविल और कुमार विश्वास राजेंद्र अग्रवाल लगातार दो बार के सांसद हैं। तीसरी बार भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं। दौड़ में अरुण गोविल, कुमार विश्वास, अमित अग्रवाल जैसे नाम हैं। अरुण गोविल प्रसिद्ध रामायण सीरियल में राम का रोल निभा चुके हैं और मेरठ के मूल निवासी हैं। कुमार विश्वास भी पिलखुवा के रहने वाले हैं, जो मेरठ लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। चूंकि BJP गाजियाबाद सीट से वीके सिंह का टिकट काटने के मूड में नहीं है, इसलिए कुमार की दावेदारी अब गाजियाबाद से हटकर मेरठ हो गई है। अमित अग्रवाल मेरठ कैंट के विधायक हैं और संघ से मजबूत पैरोकारी करा रहे हैं। पेंच क्यों फंसा है? : मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल की उम्र 72 साल हो चुकी है। यही टिकट में आड़े आ रही है। दूसरी वजह पिछली बार जीत का मार्जिन भी बेहद कम होना है। इसलिए पार्टी यहां इस बार कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। टिकट बदलने के पूरे आसार हैं। लेकिन राजेंद्र अग्रवाल संघ परिवार में मजबूत पकड़ की वजह से ही टिकट पाते रहे हैं। उनके सामने टिकट की दौड़ में जो नाम हैं, वे वीवीआईपी हैं। BJP को पश्चिम में एक-दो VVIP लोगों को 'सेट' भी करना है, इसलिए टिकट को लेकर कशमकश चल रही है। 3. सहारनपुर : यहां रिस्क फैक्टर नहीं चाहती भाजपा इस सीट पर मौजूदा सांसद हाजी फजलुर्रहमान हैं, जो बसपा से चुनाव जीते थे। भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा करीब 23 हजार वोटों से हारे थे। इस बार भाजपा से टिकट की दौड़ में राघव लखनपाल शर्मा सहित पूर्व मंत्री सुरेश राणा, अभय राणा और एक क्रिकेटर का नाम चर्चाओं में है। सुरेश राणा योगी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। वहीं अभय राणा के पिता महावीर राणा पूर्व विधायक और ताऊ जगदीश राणा भी पूर्व विधायक-सांसद रहे हैं। पेंच क्यों फंसा है? : राघव लखनपाल दो बार के विधायक और एक बार के सांसद हैं। 2014 में करीब 67 हजार वोटों से जीते थे और 2019 में करीब 23 हजार वोटों से हारे थे। दोनों बार मोदी लहर थी। इसके बावजूद 67 हजार वोटों से जीतना कोई मायने नहीं रखता। लेकिन सेकेंड मोदी लहर में हार जाना बड़े मायने रखता है। इसलिए इस हारी हुई सीट पर भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। BJP चाहती है कि यहां से किसी VVIP को टिकट दिया जाए, ताकि सीट आसानी से निकल जाए। लेकिन राघव लखनपाल अपने टिकट के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। 4. मुरादाबाद : कांग्रेस-सपा का गठबंधन, इसलिए यहां मुस्लिम प्रत्याशी पर लग सकता है दांव यहां से मौजूदा सांसद एसटी हसन हैं, जो सपा से जीते थे। 2019 के चुनाव में BJP के सर्वेश सिंह करीब-करीब एक लाख वोटों से हारे थे। 2014 में भी सर्वेश सिंह मोदी लहर के बावज
पश्चिम उत्तर प्रदेश... चुनावी महासमर का अहम किला है। जिसको फतह करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर सभी पार्टियां जोर लगा रही हैं। अहमियत ऐसे समझें कि मोदी-योगी भी चुनाव प्रचार की शुरुआत पश्चिम यूपी से ही करते हैं। यही वजह है कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा सिर्फ उन्हीं चेहरों पर दांव लगाना चाहती है, जो जीत दिलाए। इसलिए मंगलवार की आधी रात तक भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति पश्चिम यूपी की 5 सीटों के टिकटों को लेकर मंथन करती रही। ये सीट हैं, गाजियाबाद, मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली। इनमें गाजियाबाद और मेरठ सीट पर 2009 से लेकर 2019 तक, 3 चुनाव में भाजपा का ही कब्जा रहा है। जबकि मुरादाबाद और सहारनपुर में भाजपा के लिए सांसद बनाना चुनौती रहा है। मुरादाबाद में 2009 लोकसभा चुनाव में क्रिकेटर अजहरुद्दीन कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। इसके बाद 2014 में भाजपा के कुंवर सर्वेश जीते, लेकिन 2019 में यह सीट फिर सपा के पास चली गई। बरेली में पिछले 2 लोकसभा चुनाव से लगातार भाजपा के सांसद संतोष गंगवार जीतते आ रहे हैं। इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन चुनाव जीते थे। उन्हें सपा ने 2024 के आम चुनाव में अपना कैंडिडेट बनाया है। इसलिए यहां फाइट मानी जा रही है। मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली में भाजपा के टिकट पर कौन चुनाव लड़ेगा? यह अगले 24 घंटे में साफ हो जाएगा। मगर भाजपा में मेरठ सीट पर कुमार विश्वास और अरुण गोविल के नाम चल रहे हैं। गाजियाबाद में जनरल विजय कुमार सिंह टिकट की दौड़ में सबसे आगे हैं। बरेली में पीलीभीत से विधायक संजय सिंह के नाम की चर्चा है। यहां बता दें कि भाजपा यूपी की 51 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। आज 24 सीटों पर प्रत्याशी घोषित हो सकते हैं। एक-एक करके जानते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 5 सीटों पर क्यों पेंच फंसा हुआ है... 1. गाजियाबाद : नाम कई..मगर वीके सिंह मोदी-शाह की पसंद यहां से जनरल विजय कुमार सिंह BJP से लगातार दो बार सांसद हैं। दोनों बार से ही केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं। तीसरी बार भी टिकट पाने की दौड़ में सबसे ऊपर हैं। टिकट की दौड़ में कई और नाम भी आए हैं। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह, राज्यसभा सांसद डॉक्टर अनिल अग्रवाल और अनिल जैन हैं। डॉ. अनिल अग्रवाल संघ परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। वहीं अनिल जैन भी राज्यसभा सांसद हैं और भाजपा के हरियाणा-छत्तीसगढ़ प्रभारी रह चुके हैं। अरुण सिंह, गृहमंत्री अमित शाह के सबसे करीबी माने जाते हैं और लंबे वक्त से संगठन के लिए काम कर रहे हैं। पेंच क्यों फंसा है? : जनरल वीके सिंह का पॉलिटिक्स में कोई गॉडफादर है तो वो सीधे नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं। वही दोनों इन्हें भाजपा में लाए। सीधे गाजियाबाद लोकसभा सीट से टिकट दिया और पहली बार में ही केंद्र में राज्यमंत्री बनाया। अब जब पहली लिस्ट में वीके सिंह का नाम नहीं आया तो वे सीधे गॉडफादर के पास पहुंच गए और तीसरी बार भी चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की। लेकिन संघ और पार्टी नेतृत्व की तरफ से कई और नाम भी ऊपर तक पहुंच गए हैं। इसलिए इस सीट पर पेंच फंसा हुआ है। पार्टी नेतृत्व जनरल वीके सिंह को 'कुछ और' बेहतर देना चाहता है, लेकिन वीके सिंह टिकट पर अड़े हैं। 2. मेरठ : दौड़ में अरुण गोविल और कुमार विश्वास राजेंद्र अग्रवाल लगातार दो बार के सांसद हैं। तीसरी बार भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं। दौड़ में अरुण गोविल, कुमार विश्वास, अमित अग्रवाल जैसे नाम हैं। अरुण गोविल प्रसिद्ध रामायण सीरियल में राम का रोल निभा चुके हैं और मेरठ के मूल निवासी हैं। कुमार विश्वास भी पिलखुवा के रहने वाले हैं, जो मेरठ लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। चूंकि BJP गाजियाबाद सीट से वीके सिंह का टिकट काटने के मूड में नहीं है, इसलिए कुमार की दावेदारी अब गाजियाबाद से हटकर मेरठ हो गई है। अमित अग्रवाल मेरठ कैंट के विधायक हैं और संघ से मजबूत पैरोकारी करा रहे हैं। पेंच क्यों फंसा है? : मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल की उम्र 72 साल हो चुकी है। यही टिकट में आड़े आ रही है। दूसरी वजह पिछली बार जीत का मार्जिन भी बेहद कम होना है। इसलिए पार्टी यहां इस बार कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। टिकट बदलने के पूरे आसार हैं। लेकिन राजेंद्र अग्रवाल संघ परिवार में मजबूत पकड़ की वजह से ही टिकट पाते रहे हैं। उनके सामने टिकट की दौड़ में जो नाम हैं, वे वीवीआईपी हैं। BJP को पश्चिम में एक-दो VVIP लोगों को 'सेट' भी करना है, इसलिए टिकट को लेकर कशमकश चल रही है। 3. सहारनपुर : यहां रिस्क फैक्टर नहीं चाहती भाजपा इस सीट पर मौजूदा सांसद हाजी फजलुर्रहमान हैं, जो बसपा से चुनाव जीते थे। भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा करीब 23 हजार वोटों से हारे थे। इस बार भाजपा से टिकट की दौड़ में राघव लखनपाल शर्मा सहित पूर्व मंत्री सुरेश राणा, अभय राणा और एक क्रिकेटर का नाम चर्चाओं में है। सुरेश राणा योगी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। वहीं अभय राणा के पिता महावीर राणा पूर्व विधायक और ताऊ जगदीश राणा भी पूर्व विधायक-सांसद रहे हैं। पेंच क्यों फंसा है? : राघव लखनपाल दो बार के विधायक और एक बार के सांसद हैं। 2014 में करीब 67 हजार वोटों से जीते थे और 2019 में करीब 23 हजार वोटों से हारे थे। दोनों बार मोदी लहर थी। इसके बावजूद 67 हजार वोटों से जीतना कोई मायने नहीं रखता। लेकिन सेकेंड मोदी लहर में हार जाना बड़े मायने रखता है। इसलिए इस हारी हुई सीट पर भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। BJP चाहती है कि यहां से किसी VVIP को टिकट दिया जाए, ताकि सीट आसानी से निकल जाए। लेकिन राघव लखनपाल अपने टिकट के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। 4. मुरादाबाद : कांग्रेस-सपा का गठबंधन, इसलिए यहां मुस्लिम प्रत्याशी पर लग सकता है दांव यहां से मौजूदा सांसद एसटी हसन हैं, जो सपा से जीते थे। 2019 के चुनाव में BJP के सर्वेश सिंह करीब-करीब एक लाख वोटों से हारे थे। 2014 में भी सर्वेश सिंह मोदी लहर के बावजूद सिर्फ 87 हजार वोटों से जीत पाए थे। सर्वेश सिंह के अलावा मौजूदा जिला पंचायत अध्यक्ष शैफाली सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता जफर इस्लाम टिकट की रेस में हैं। शैफाली सिंह की पैरवी खुद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी कर रहे हैं। पेंच क्यों फंसा है? : सर्वेश सिंह की उम्र 74 साल हो चुकी है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह से उनके रिश्ते अच्छे नहीं हैं, लेकिन मुख्यमंत्री से नजदीकियां हैं। वहीं संगठन शैफाली सिंह और जफर इस्लाम में से एक को टिकट चाहता है। मुरादाबाद सीट पर मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या है। इसलिए भाजपा यहां यहां जफर इस्लाम पर दांव लगा सकती है। हालांकि पहली लिस्ट में भाजपा ने एक भी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया है। 5. बरेली : संतोष गंगवार की उम्र आड़े आई, कई बड़े चेहरे कतार में बरेली भाजपा का गढ़ मानी जाती है। 2017 के चुनाव में सभी 9 विधानसभा सीटों पर भाजपा के कैंडिडेट जीते थे। यहां मेयर उमेश गौतम भाजपा से, जिला पंचायत अध्यक्ष भी भाजपा के ही हैं। मौजूदा सांसद संतोष गंगवार 8 बार के सांसद हैं। 9वीं बार फिर टिकट की दौड़ में शामिल हैं।
बरेली से दूसरी बार मेयर बने उमेश गौतम और पीलीभीत शहर से विधायक संजय सिंह गंगवार का नाम भी शामिल है। संजय गंगवार यूपी सरकार में राज्यमंत्री भी हैं। पेंच क्यों फंसा है? : संतोष गंगवार की उम्र 76 साल हो चुकी है। इस सीट पर गंगवार बिरादरी के वोटों की संख्या साढ़े 3 लाख के आसपास बताई जाती हे। इस हिसाब से अगर संतोष गंगवार का टिकट कटता है तो पीलीभीत शहर विधायक संजय सिंह गंगवार का नाम ऊपर आ जाता है। लेकिन वो बरेली शहर से थोड़ा बाहरी हो जाएंगे। इसलिए उमेश गौतम का नाम चर्चाओं में आ जाता है। उमेश संघ और मुख्यमंत्री योगी के करीबी माने जाते हैं। इसीलिए उन्हें दूसरी बार मेयर का टिकट मिला और चुनाव भी जीते थे। एक पेंच ये भी है कि पार्टी अगर उमेश को टिकट देती है तो कुछ महीनों पहले हुआ मेयर इलेक्शन दोबारा कराना पड़ेगा और उसमें अच्छी-खासी मशक्कत होगी।